रोज़मर्रा की खुशियाँ – ज़िंदगी के छोटे-छोटे पल

ज़िंदगी की असली खूबसूरती बड़े-बड़े सपनों या भारी-भरकम कामयाबी में नहीं छिपी होती। सच कहें तो असली मज़ा तो उन छोटे-छोटे पलों में है जिन्हें हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। सुबह की ताज़ा हवा, शाम की गरमा-गरम चाय, बारिश की बूंदें, किसी दोस्त के साथ ठहाके, पालतू जानवर का मासूम प्यार या किसी अजनबी की छोटी-सी मदद – यही तो हैं वो रोज़मर्रा की खुशियाँ जो हमारी थकी हुई दिनचर्या को भी रंगीन बना देती हैं।
बरसात का मौसम इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। बूंदों की टप-टप सुनना, मिट्टी की भीगी खुशबू महसूस करना और खिड़की पर बैठकर गरमा-गरम चाय की चुस्कियाँ लेना – ये पल हमें बचपन में लौटा ले जाते हैं। उस वक्त का मज़ा ही कुछ और था, जब बारिश में कागज़ की नाव बहाना सबसे बड़ी खुशी लगती थी। कोई सही ही कह गया – “बरसात का मौसम भी क्या ग़ज़ब कर गया, बचपन की कश्ती फिर से दिल में उतर गया।”
अब बात करते हैं चाय की। चाय सिर्फ़ एक पेय नहीं बल्कि एक एहसास है। चाहे सुबह नींद खोलनी हो, ऑफिस की थकान उतारनी हो या दोस्तों से दिल खोलकर बातें करनी हों – एक कप चाय सब कुछ आसान कर देती है। कहते हैं कि प्यार करने से नींद उड़ जाती है, लेकिन भाई चाय पी लो तो नींद का नामोनिशान ही नहीं मिलता! चाय का असली जादू यही है कि यह हर रिश्ते को और गहरा बना देती है।

पालतू जानवर भी ज़िंदगी की छोटी खुशियों का बड़ा हिस्सा हैं। दरवाज़ा खोलते ही जब आपका कुत्ता पूंछ हिलाते हुए आपकी ओर दौड़कर आता है या बिल्ली आपकी गोद में आकर सिमट जाती है – तो दिनभर की थकान एक पल में गायब हो जाती है। ये छोटे-छोटे साथी हमें सिखाते हैं कि खुशी पाने के लिए बड़े कारणों की ज़रूरत नहीं होती।
खुश रहने का एक और आसान तरीका है – हँसना। कहते हैं, हँसी सबसे अच्छी दवा है और ये बात सौ प्रतिशत सच है। दोस्तों के साथ बैठे ठहाके हों या किसी मज़ेदार किस्से पर खुलकर हँसना – ये लम्हे दिल से बोझ उतार देते हैं। एक मजेदार चुटकुला याद आ रहा है –
पति ने पत्नी से पूछा, “तुम इतनी देर तक फोन पर किससे बातें कर रही थीं?”
पत्नी बोली, “अरे, कोई गलती से नंबर मिला बैठा था।”
पति ने फिर पूछा, “तो तुमने दो घंटे क्यों बातें कीं?”
पत्नी मुस्कुराई और बोली, “उसे समझा रही थी कि गलत नंबर है!”
दयालुता भी एक ऐसी चीज़ है जो रोज़मर्रा की खुशियों को दोगुना कर देती है। जब आप किसी अजनबी को मुस्कुरा कर देखते हैं, किसी बुज़ुर्ग को सड़क पार करवाते हैं, या किसी गरीब की मदद करते हैं – तो दिल में एक अलग सुकून महसूस होता है। दयालुता की खूबसूरती यही है कि इसे बाँटने से यह कम नहीं होती, बल्कि और बढ़ जाती है।
अगर ध्यान से देखा जाए तो ज़िंदगी छोटी-छोटी खुशियों से ही बनी है। सुबह उठकर पक्षियों की चहचहाहट सुनना, माँ के हाथों का बना खाना, किसी पुराने दोस्त का अचानक फोन आ जाना, या एक पुराना गाना सुनकर बचपन याद आ जाना – ये सब बातें हमारे दिल को छू जाती हैं। यही वो असली खुशियाँ हैं जो हमें याद दिलाती हैं कि ज़िंदगी को जटिल बनाने की ज़रूरत नहीं है। जैसे किसी शायर ने कहा है – “खुशियाँ खरीदने दौड़े सब बाज़ार, पर सुकून मिला माँ की दाल–चावल में यार।”
आज की तेज़ ज़िंदगी में लोग अक्सर इन छोटी-छोटी खुशियों को भूल जाते हैं और बड़े सपनों के पीछे भागते रहते हैं। लेकिन सच यही है कि छोटी खुशियाँ ही हमें मानसिक शांति देती हैं, रिश्तों में मिठास भरती हैं और ज़िंदगी को जीने का असली मज़ा देती हैं। जब हम इन्हें जीना सीख जाते हैं तो हमें हर दिन जीने लायक और सुंदर लगने लगता है।
इन खुशियों को अपनाने का तरीका भी बहुत आसान है। सुबह सूरज की पहली किरण को महसूस करो, दोस्तों के साथ हँसने का समय निकालो, चाय को बस जल्दी-जल्दी पीने की बजाय उसका मज़ा लो, हर रोज़ किसी की मदद करो और मोबाइल से थोड़ा दूर रहकर प्रकृति के साथ समय बिताओ।
आख़िरकार ज़िंदगी का असली मज़ा इन्हीं छोटे-छोटे पलों में छिपा है। बारिश की फुहार, चाय की प्याली, पालतू जानवर की शरारतें, दोस्तों की हँसी और दिल से निकली शायरी – यही तो है असली ज़िंदगी। और सच तो यही है – “न बड़े मकानों से, न बड़ी गाड़ियों से, ज़िंदगी खूबसूरत है इन छोटी खुशियों से।”


Post Comment