“सुप्रीमकोर्ट का बड़ा फैसला: अब डॉग लवर्स और एनजीओ को भरने होंगे 25 हज़ारऔर 2 लाखरुपये”

दिल्ली की एक अदालत के बाहर खड़ी सीमा (बदला हुआ नाम) हाथ में तख्ती लिए कह रही थी – “हमारे कुत्ते हमारी जिम्मेदारी हैं।” उनके जैसे कई डॉग लवर्स और एनजीओ पिछले कुछ हफ्तों से लगातार अदालत का रुख कर रहे थे। मुद्दा था – आवारा कुत्तों की देखभाल

22 अगस्त 2025 को आया सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला उन सभी के लिए चौंकाने वाला भी था और राहत भरा भी। अदालत ने कहा – जो भी डॉग लवर्स या एनजीओ इस मामले में शामिल हैं, उन्हें अपनी गंभीरता साबित करने के लिए पैसे जमा करने होंगे।

  • हर डॉग लवर को 25 हज़ार रुपये जमा करने होंगे।
  • हर एनजीओ को 2 लाख रुपये कोर्ट रजिस्ट्री में सात दिन के भीतर जमा करने होंगे।

अदालत ने साफ कर दिया कि यह राशि केवल और केवल आवारा कुत्तों की देखभाल में खर्च होगी – जैसे आश्रय गृह बनाना, नसबंदी, टीकाकरण और खाने के लिए तय जोन तैयार करना।

क्यों आया यह फैसला?

11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखा जाए। इस आदेश पर जमकर विरोध हुआ। लोगों ने कहा कि यह न तो व्यावहारिक है और न ही मानवीय।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का आदेश बदला और कहा गया कि –

  • कुत्तों को नसबंदी, टीकाकरण और डिवार्मिंग के बाद छोड़ा जाए।
  • केवल आक्रामक या रेबीज़ से पीड़ित कुत्तों को ही शेल्टर में रखा जाएगा।
  • आम लोग सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों को खाना नहीं खिलाएंगे, इसके लिए नगर निगम को फीडिंग जोन बनाने होंगे।

फैसले का असर किस पर होगा?

  • डॉग लवर्स – उन्हें 25 हज़ार रुपये भरने होंगे। यह राशि छोटी नहीं है, लेकिन अदालत चाहती है कि सिर्फ वही लोग आगे आएं जो सच में गंभीर हैं।
  • एनजीओ – 2 लाख रुपये जमा करना उनकी जवाबदेही बढ़ाता है। छोटे एनजीओ के लिए यह मुश्किल हो सकता है, लेकिन पारदर्शिता लाना ज़रूरी है।
  • नगर निगम – अब उनके पास धन और आदेश दोनों होंगे, जिससे कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और शेल्टर प्रबंधन आसान होगा।
  • आम जनता – सड़कों पर कुत्तों की संख्या नियंत्रित होगी और हादसों का खतरा कम होगा।
  • आवारा कुत्ते – उन्हें मिलेगी देखभाल, दवा और सुरक्षित वातावरण।

यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला समाज और अदालत को जोड़ता है, लेकिन इसके साथ कुछ सवाल भी खड़े होते हैं:

  • क्या छोटे एनजीओ वाकई 2 लाख रुपये जुटा पाएंगे?
  • क्या जमा की गई राशि का पारदर्शी उपयोग होगा?
  • क्या नगर निकाय पूरे देश में समय पर ढांचा तैयार कर पाएंगे?
  • निष्कर्ष
  • यह फैसला दरअसल एक संदेश है – केवल बोलने से काम नहीं चलेगा, जिम्मेदारी निभानी होगी।
    डॉग लवर्स और एनजीओ द्वारा जमा किए जाने वाले 25 हज़ार और 2 लाख रुपये अदालत की नज़र में सिर्फ फीस नहीं हैं, बल्कि यह आवारा कुत्तों की जिंदगी बदलने की चाबी हैं।
  • अगर यह मॉडल सफल होता है, तो आने वाले दिनों में भारत को एक राष्ट्रीय स्तर की एक समान नीति मिल सकती है, जिसमें इंसान और पशु दोनों की सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित होगी।

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